Saturday, 1 April 2023

IAR: Practical Criticism

 Hello Reader,

This blog is a part of my academic activity which is given on this blog. In this theory, Structuralism is an approach to analyzing the narrative material by examining the underlying invariant structure. There are many structuralist critics like Ferdinand Saussure, Gerard Genette, Roland Barthes, Claude Levi-Strauss etc. Structuralist critics found basic common structure in every work. As all the human beings have a same structure from inside, similarly literature has basic structure and it is same everywhere whether it movies, Tv serials or advertisement.


So, here being a structuralist I am going to analyse one poetry 'Meri Saree' by Sabika Abbas Naqvi with the help of different perspective or term of structuralism like:




तुम्हे लगा मेरे बदन पे लिपटी साड़ी सिर्फ एक चमकदार कपड़ा है,

जिसकी मैचिंग की फॉल शाहिद कपुर ढूंढता फ़िरेगा 

तुम्हे लगा मेरी साडी वो ठोस पहनावा है 

जिसको पहनकर हम टिप-टिप बरसते पानी मे सेक्सी नाच दिखाएँगे ।


तुम्हे लगा मेरी साडी वो है जिसका पल्लू सिर्फ पिया के लिए नकली हवा मे सर-सर उड़ता है

तुम्हे लगा मेरी साडी मेरे संस्कारी होने की मार्कशीट है

नहीं, ये साडी तुम्हारी सोच से परे है, ये वो ९ गज का कपड़ा है जिसमे मेने खुद के वजूद को लपेटा है।


ये वो सड़क है जिसको ना-जाने कितनी बार तुम रोंद कर गुज़र गये हो।

मेरी साडी पुस्ते हवा पे उड़ती हुई मज़लुमो की साया फिगन छा जाती है।


ये साडी बड़ी multi purpose है

कभी मेरे बदन की साडी बन जाती है, कभी रातो मे रज़ाई, कभी मेरी माँ की मेहनत की कमाई….

जब उसे पूछा त उसने कहा, तुम्हारी साडी is like waterfall  waves fluttering in the thunderstorms.


मेरी साडी वो शामियाना है जिसे तुम आसमान कहते हो, मेरी साडी हि त वो ज़मीन है जिस फ़र्ज़ पे तुम रहते हो।

ये साडी नदी की वो लहर है जिद पर तुम इश्क़ की नाव चलाते हो, इसी साडी से हम फांसीवाद को फांसी लगाते है।




तुमने भी कम कोशिशें नहीं की इस साड़ी मे बहोत छेद बनाये है इसको कै जगह से फाड़ा है, लेकिन हम भी बेहतेरीन रफुनगाज़ है एक एक छेद मे हमने पैवंद लगाया है और भी रंगीन टुकड़ो का ।


तुमने जहाँ से जातिवाद की कैंची लगायी थी उस पर मेने सावित्री फुले की साडी का बेहतरीन टुकड़ा काट के सिल दिया।

जहां तुमने सिल्का परस्ती की छेद लगाए थे वहा मेने शबाह से धागे लेकर बुट्टे गाड़ दिये है। जब आँचल तुम जलाने लगे तो वहा हमने इरोम की साडी का आँचल लगा दिया।


जब हेम पर तुमने तेजाब फेंका  हमने भी लक्समी से उसमे पैचवर्क करवा लिया। 

ये सच है की ये साडी अब सिर्फ मेरी नहीं, 

        आँचल है इरोम का, ब्लाउज बेला का,

        घेर बना है शबाह से लेकर काश्मीर की तमाम औरतों की चादर हर एक बल की साडी मे विक्रम है, आलोक है, माधवी है और हमीदा है।


हर एक ने उसमे अपनी पसंद का रंग मिलाया बड़ी हसरत से इस साडी को बनाया।

ये साडी नई नहीं है, बहोत पुरानी है इसकी एक एक धागो मे बुनकरों ने लहू मिलाया है।


इस पर फॉल लगी है इश्क़ के मर्कसो की, चरक हुयी है प्रतिरोध की छिटो की,

ये वो साडी है जिसके भगवे के रंग मे तुमने जबरदस्ती भारत माता को लपेटा है।


इसी साडी मे तुमने बस्तर को बंध घसीटा है, ये साडी किसी के बाप की जागीर नहीं, ये तुम्हारी संस्कृति के wet dreams की तादिर नहीं है।

इस से हम तुम्हारे बेमतलब सवालों और इलज़ामो के भरे मुंह को बाँध देते है और जब मन चाहा जैसे मन चाहा पहनकर हम चल देते है।


कांजीवरम मे मुनार हिलाये है, बुमकाई और संभालपुरी लुगड़ा पहेन हमने आज़ादी के गीत गाये है फिर चिकन को खुद पे अदब से लपेट हमने बीफ कबाब खाये है।

हमारे किसान आंदोलनो को पहचान बनी लहेरिया मेखला चौदौर पहन तोड़ दिया, अफसपा (Afspa) कमरिया इस साडी को हि हमने किताब बना लिया।


पहले इस पर कविताएं लिखी, किस्से लिखे प्यार के- सरहदो के मबारसतो के फिर इसको अपने नापाक बदन पे चढ़ा लिया।

सुन लो, ये साडी तुम्हारे राष्ट्रवाद का पैरहत नहीं, ये एक उधम है जिसको कुरुक्षेत्र मे सजवा दिया।


ये एक वो कफन है जिसका पुरुस्ताक दफना दिया, ये एक चमन हैं, जिसने मसलुमो ने मिलकर सजवा दिया।


तुम बहोत curious रहते होना की चोली के पीछे क्या है?  इस साडी के चोली के पीछे मेरे पिस्तानों की उपहार है जो भरे है आज़ादी को रगोमे पहोंचाने के लिए मेरी पसलिया है जो मेरे अमन के नग्मे गाती है।


इस साडी को मे जब पहनती हू तो मेरी नाभि दिखेगी वो नाभि जो इस भवर है जहद का,

ये साडी तुम्हारी तरह judgemental नहीं है, किसी भी तन मे बैठ जाती है और उसे अपना बना लेती है, जैसा भी तन हो तुम्हारे पैमानो मे fit होता हो या नही ये साडी उस बदन की शक लेती है और उसके लहू को रोशनाई बनाकर खुद पर उस तन के जेहाद दर्ज़ करती है।


जब जब तुम्हारे हाथ इस साडी की ओर जाने बढ़ेंगे ये साडी परचम बन जाएंगी मत भूलो हर तूफान मे गे साडी उड़कर आएगी, तुम्हे बड़ा सताएगी तुम left right के लोग सभी Tug of war खेलते जाओ इसे पकड़कर ये तुम्हारा मज़ाक उड़ाएगी ये बेघरों का फेमा है बड़ी मुश्किल।


इसको पाना है आज उड़ रही सरे जमाना है इसे हर ज़ुल्म का इंतकाम लेना है, इसमे से खुशबु आती है पसीनो की…

वो पसीना जो बहा है जंग करने मे सिर का परास्त मर्द मर्दानगी परस्ती से ये एक बदन से उतरकर दूसरे बदन पे आएगी, जब भी इस साडी को पहननेवाली गुज़र जाएगी तुम लाख जलाना चाहो इसे ये जल ना पायेगी।


जब कब्र मे अपने पहननेवाले को पायेगी तो ज़मीन इस साडी को उस कब्र का साया बनाएगी। 

ये साडी जब जब फाड़ी जाएगी, बिगाड़ी जाएगी, तुम मुआँसरे मे किसी और बदन पे किसी और घर मे किसी और चौराहे पे एक नया रूप ले आएगी।


मेरी साडी सिय्या साडी, रंगीली साडी, सतरंगी साडी, बेकही, बेकरहम, बिमूवर्त्त, बेशर्म साडी।



Table of Contents:-


  • Wider contextual literature


  • Sign, signifier and signified 


  •  Langage, Langue and Paro


  • code without message.




Wider contextual  literature:


In this perspective wide range reading of any kind of literature, reader should be familiar with the intentionally metaphoric meaning of the words and different phenomena used in work. In this poem she mingled all women from Kashmir to kanyakumari and portrayed their strength in the form of saree and also connected the poem with various historical events and characters like Savitribai Phule, Dropadi's disrobing event, acid attack victim Laxmi Agarwal and Iron lady Irom who protested against government act(AFSPA). Bela Bhatia who working in Bastar district of chhattisgarh for human right and Shabah Haji(social reformer from J&K)The poet also says about fascism that is indicate to Gulabi Gang(the group of women activist from U.P who wear pink Saree and stand for violence against women ). So here we can say that one can not understand without wide knowledge like who was Savitribai, Bela Bhatia, laxmi and Irom. Thus reader should uncover structure of the poem to understand in the proper way.



2) Sign, signifier and signified:



Here we will analyze this poem with Ferdinand De Saussure's term of sign, signifier and signified that first we can say that signifier means a thing that give us proper meaning so this saree is signifier and then what is evoke in our mind what is mental concept, so our mental concept see that saree as only a clothe or the clothes of ladies that called signified then anything that conveys meaning means outcome of meaning is called sign. So, when poetess says that saree is not just a cloth but saree as a strength of women, future of nation. Then she compare with a garden, coffin, ensign. Furthermore she personified saree as freedom fighter and also compare with sky, floor, waterfall. So, here the nine yard cloth that has been objectified, sexualised and yet remains one of the strongest symbol of female courage and identity that is sign conveys through different point of views and perspective.

                      


Langage, Langue and parole:


If we explain these words in a simple way, so we can say that Langage or langue means those words are spoken universally but rarely thought in everyday life whereas parole means individual utterances means we use in day today life. It is by understanding the relationship of the two parts of the sign through langue that the signification of communication or parole may be understood. Without the understanding of langue, parole would be meaningless sounds or symbols grouped together arbitrary. So in this poem we have seen that poetess used metaphoric langue much more e.g नव गज के कप्डे मे खुद के वजुद को लपेटा है, मेरि साडि पुश्ते हवा, कान्जिवरम, बोमकाइ, साभल्पुरि, मबाशेरत, जेह्द?(perseverance), पर्चम(ensign), etc those words we are not use in everyday life that which are under the term of langue therefore reader somewhere feel stranger towards words.So, if you understand the langue of sign than parole may be easy. Thus, we have to uncover the langue of the poem 'Saree' and try to make easy.


Code without Message:


 Russian Formalism regards literature as code without message. Structuralism by structural analysis makes it possible to uncover the connection that exists between a system of forms and a system of meanings, by replacing the search for term by term analysis with one for over all similarity. In traditional criticism believe in message but now critics emphasize on code means doubting. In this poem poetess connected simple cloth with highly things of world. So some may have question she says like इन सारि मे तुम्ने बहोत छेद लगाये है!(sexual harassment, no.freedom.for women), कहि जगह से फाडा है!(rape), फिर्का परस्ति का छेद लगाया है(casteism), इसि साडि मे तुम्ने बस्तर को बाध घसिटा है!(district of Chhatisgadh where Bela bhatiya working for human right against Government). So, in this way we must understand first the code of any work then go to message of that work. If we see any kind of work in this way that literature should be pleasing us moral lesson is not necessary. 


The saree as a symbol of resistance has been around for decades. The weavers wove ‘blood’ and what the poetess calls ‘splashes of resistance’ into every saree they made. The forced saffron saree that the country is draped in, is not representative of how it is. The saree is not a symbol of docility or acquiescence, but a tool for the agency. She speaks about how women donned the Mekela Chador and fought against AFSPA, how the Leheriya saree became a symbol of the farmers' protest. The saree, she says, is not the attire of hyper-nationalism. The saree is not judgemental, it accepts and owns anybody that drapes it.


The poetess uses the saree to weave a story around women’s existence in the country. The tears and battering signify the assault and daily violence women face. Despite everything, the saree, much like women, comes out strong, in solidarity and togetherness. There is also perhaps, a hint about the need for mainstream feminism to perhaps back off and practice what they preach about inclusivity. The saree is for everyone and movements should be too.



To conclude, we can connect this poem with the term of structuralism like Langage, langue and parole to understand the words of the poem, also we should see saree with different perspective to analyse sign, signifier and signified. As per Russian formalist says that literature should be pleasing the reader in the term of code, moral message is not necessary in literature. We should doubt and uncover the hide meaning and should know that what do poet conveys through any kind of work.


Watch “Meri Saree” by Sabika Abbas Naqvi here:-








           








 





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